सरकारी सेवकों की स्थायीकरण नियमावली 1991, उत्तर प्रदेश

सरकारी सेवकों की स्थायीकरण नियमावली 1991, उत्तर प्रदेश

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उत्तर प्रदेश राज्य के सरकारी सेवकों की स्थायीकरण नियमावली, 1991, यह नियमावली उत्तर प्रदेश और उत्तराखण्ड के विभिन्न विभागों के सरकारी कर्मचारियों/अधिकारीयों पर लागू होती है, तथा यह नियमावली का शासनादेश संख्या: संख्या 1648-47-का-4-90-48-79 लखनऊ, 7 फरवरी, 1991 द्वारा लागू की गयी हैं. यह शासनादेश और पूरी नियमावली यहाँ दी गयी हैं:-

उत्तर प्रदेश सरकार

कार्मिक अनुभाग-4 संख्या 1648-47-का-4-90-48-79 लखनऊ, 7 फरवरी, 1991

अधिसूचना

सा० प० नि- 9

संविधान के अनुच्छेद 309 के परन्तुक द्वारा प्रदत्त शक्ति का प्रयोग करके राज्यपाल निम्नलिखित नियमावली बनाते हैं-

उत्तर प्रदेश राज्य के सरकारी सेवकों की स्थायीकरण नियमावली, 1991

संक्षिप्त नाम, प्रारम्भ और लागू होना

  1. (1) यह नियमावली उत्तर प्रदेश राज्य के सरकारी सेवकों की स्थायीकरण नियमावली, 1991 कही जायेगी।

(2) यह सरकारी गजट में प्रकाशित होने के दिनांक से प्रवृत होगी।

(3) यह उन सभी व्यक्तियों पर लागू होगी जो उत्तर प्रदेश के कार्यकलापों के सम्बन्ध में कोई सिविल पद धारण करते हों और जो संविधान के अनुच्छेद 309 के परन्तुक के अधीन राज्यपाल के नियम बनाने के नियन्त्रणाधीन हों।

अध्यारोही प्रभाव

  1. इस नियमावली के उपबन्ध संविधान के अनुच्छेद 309 के परन्तुक के अधीन राज्यपाल द्वारा बनाए गए किन्हीं अन्य नियमों या तत्समय प्रवृत आदेशों में किसी बात के प्रतिकूल होते हुए भी प्रभावी होंगे।

परिभाषाएँ

  1. जब तक कि विषय या सन्दर्भ में कोई बात प्रतिकूल न हो, इस नियमावली में-

(क) किसी पद या सेवा के सम्बन्ध में ‘नियुक्ति प्राधिकारी’ का तात्पर्य सरकार द्वारा जारी किये गये सुसंगत सेवा नियमों का कार्यपालक अनुदेशों के अधीन ऐसे पद पर या सेवा में नियुक्ति करने के लिए सशक्त प्राधिकारी से है।

(ख) ‘संविधान का तात्पर्य ‘भारत का संविधान’ से है।

(ग) ‘सम्वर्ग’, किसी पृथक इकाई के रुप में स्वीकृत किसी सेवा या सेवा के किसी भाग की सदस्य संख्या से है।

(घ) ‘सरकार’ का तात्पर्य उत्तर प्रदेश की सरकार से है।

(ड.) ‘राज्यपाल’ का तात्पर्य उत्तर प्रदेश के राज्यपाल से है।

(च) ‘सरकारी सेवा’ का तात्पर्य उत्तर प्रदेश राज्य के कार्य-कलापों के सम्बन्ध में किसी लोक सेवा या पद पर नियुक्त किसी व्यक्ति से है।

(छ) ‘धारणधिकार’ का तात्पर्य किसी सरकारी सेवक के किसी नियमित पद को, चाहे वह स्थायी हो या अस्थायी, या तुरन्त या तो अनुपस्थिति को अवधि की समाप्ति पर, धारण करने के अधिकार या हक से है।

कार्मिक अनुभाग 4 की विज्ञप्ति संख्या 1648-47-का-4-90-48/79, दिनांक 7-2-91 द्वारा उत्तर प्रदेश राज के सरकारी सेवक स्थायीकरण नियमावली, 1991 प्रसारित की गई जिसके अनुसार अब नियमित अस्थायी पदों पर भी स्थायीकरण किया जा सकता है तथा तदनुसार ‘धारणाधिकार’ (लियन) की परिभाषा अब निम्न प्रकार से संशोधित कर दी गई-

‘धारणाधिकार’ का तात्पर्य किसी सरकारी सेवक के किसी नियमित पद को, चाहे वह स्थायी हे या अस्थायी, या तो तुरन्त या अनुपस्थिति की अवधि की समाप्ति पर, धारण करने के अधिकार या हक से है।

(ज) विहितं’ का तात्पर्य संविधान के अनुच्छेद 309 के परन्तुक के अधीन राज्यपाल द्वारा बनाये गए नियमों द्वारा या किसी विशिष्ट सेवा के सम्बन्ध में सरकार द्वारा निर्गत कार्य-पालक अनुदेशों द्वारा, विहित से है।

(झ) ‘सेवा’ का तात्पर्य सुसंगत सेवा नियमों या सरकार द्वारा समय-समय पर जारी किये गये कार्य-पालक अनुदेशों में यथा परिभाषित सेवा से है।

(ञ) ‘मौलिक नियुक्ति’ का तात्पर्य सेवा के सम्वर्ग में किसी पद पर ऐसी नियुक्ति से है जो तदर्थ नियुक्ति न हो और नियमों के अनुसार चयन के पश्चात की गई हो, और यदि कोई नियम न हो तो सरकार द्वारा जारी किये गये कार्य-पालक अनुदेशों द्वारा तत्समय विहित प्रक्रिया के अनुसार चयन के पश्चात की गई हो।

स्थायीकरण जहाँ आवश्यक हैं-

  1. (1) किसी सरकारी सेवक का स्थायीकरण केवल उसी पद पर किया जायेगा जिस पर वह, (एक) सीधी भर्ती के माध्यम से या (दो) यदि भर्ती का एक स्रोत सीधी भर्ती भी है, प्रोन्नति द्वारा या (तीन) यदि पद भिन्न सेवा से सम्बन्धित है तो प्रोन्नति द्वारा, मौलिक रुप से नियुक्त किया गया हो।

(2) ऐसा स्थायीकरण निम्नलिखित के अनुसार, किया जाएगा-

(एक) ऐसे पद के प्रति चाहे वह स्थायी हो या अस्थायी, जिस पर किसी अन्य व्यक्ति का धारणाधिकार न हो।

(दो) यथास्थिति, सुसंगत सेवा नियमों, या सरकार द्वारा निर्गत किये गये कार्य पालक अनुदेशों में दी गई स्थायीकरण की शर्तों को पूरा करने के अधीन ।

(तीन) स्थायीकरण के सम्बन्ध में नियुक्ति प्राधिकारी द्वारा औपचारिक आदेश जारी किया जाना आवश्यक।

स्पष्टीकरण-इस तथ्य के होते हुए भी कि कोई सरकारी सेवक किसी अन्य पद पर स्थायी है, चाहे वह किसी पद पर सीधे भर्ती किया जाए, या किसी पद पर, जहाँ भर्ती का एक स्रोत सीधी भर्ती भी हो, प्रोत्रत किया जाय तो उस पद पर स्थायी करना होगा।

स्थायीकरण जहाँ आवश्यक नहीं है-

5. (1) स्थायीकरण तब आवश्यक नहीं होगा, जब तक कोई सरकारी सेवक उस संवर्ग में, जिसमें भर्ती का स्रोत प्रोन्नति ही हो, विहित प्रक्रिया का पालन किए जाने के पश्चात नियमित आधार पर प्रोन्नत किया जाये।

(2) उपनियम (1) में निर्दिष्ट पद पर प्रोन्नत होने पर सरकारी सेवक को वे सभी लाभ प्राप्त होंगे जो उस श्रेणी में स्थायी किए गए, यदि कोई परिवीक्षा विहित न की गई हो, किसी व्यक्ति को प्राप्त होते।

(3) जहाँ परिवीक्षा विहित है वहाँ नियुक्ति प्राधिकारी निहित परिवीक्षा अवधि पूरी होने पर सरकारी सेवक के कार्य और आचरण का स्वयं मूल्यांकन करेंगी और इस निष्कर्ष पर पहुंचने को दशा पर की सरकारी सेवक उच्चतर श्रेणी के लिए उपयुक्त है तो वह यह घोषित करते हुए एक आदेश जारी करेगी कि सम्बन्धित व्यक्ति ने परिवीक्षा की अवधि सफलतापूर्वक पूरी कर ली है। यदि नियुक्ति प्राधिकारी के विचार में सम्बन्धित सरकारी सेवक का कार्य और आचरण सन्तोषजनक नहीं रहा है या कुछ और समय तक उसके कार्य और आचरण को देखने की आवश्यकता है तो वह उसे उस पद या श्रेणी पर प्रत्यावर्तित कर सकता है जिससे वह प्रोत्रत किया गया था, या परिवीक्षा की अवधि विहित रीति से बढ़ा सकता है।

(4) जहाँ उच्चतर पद पर प्रोन्नति के लिए पात्रता की एक आवश्यक शर्त निम्नतर पोषक पद पर स्थायीकरण विहित की जाय, वहाँ नियम 4 के उप नियम (1) के अधीन निम्नतम पद पर स्थायी कोई व्यक्ति उच्चतर पद पर प्रोन्नति के लिए पात्र होगा और निम्नतर पद पर उसका स्थायीकरण आवश्यक नहीं होगा यदि उस पद पर उसका कार्य और आचरण सन्तोषजनक पाया जाय।

दृष्टान्त-(1) ‘लेखपाल सेवा नियमावली’ में लेखपाल के पद पर भर्ती का एक मात्र स्रोत सीधी भर्ती है। ‘क’ लेखपाल के रुप में सीधी भर्ती के माध्यम से नियुक्त किया जाता है। ‘ख’ को नियम 4 के उप नियम (1) के अधीन उक्त पद पर स्थायी करना होगा।

(2)’ख’ तहसीलदार के पद पर एक स्थायी सरकारी सेवक है जिसे उत्तर प्रदेश सिविल सेवा (कार्यकारी शाखा) नियमावली, 1982, के उपबन्धों के अधीन उत्तर प्रदेश सिविल सेवा (कार्यकारी शाखा) में सामान्य श्रेणी के एक पद पर प्रोन्नत किया जाता है। ‘ख’ को नियम 4 के उपनियम (1) के अधीन पुनः बाद वाले पद पर स्थायी करना होगा।

(3) ‘ग’ को सीधी भर्ती के माध्यम से सिंचाई विभाग में सहायक अभियन्ता के रुप में नियुक्त किया जाता है और ‘घ’ को यूनाइटेड प्राविन्सेज सर्विस आफ इन्जीनियर्स क्लास टू (इरीगेशन ब्रान्च) रुल्स, 1936 के उपबन्धों के अधीन और प्रोन्नति कोटा के प्रति सहायक अभियन्ता के पद पर प्रोन्नत किया जाता है। ‘ग’ और ‘ख’ को दोनों सहायक अभियन्ता के पद पर स्थायी करना होगा क्योंकि सहायक अभियन्ता के पद पर भर्ती के स्रोतों में सीधी भर्ती एक स्रोत है।

(4) ‘ङ’ सिंचाई विभाग में एक स्थायी सहायक अभियन्ता है जिसे सरकार द्वारा निर्गत किए गए कार्यपालक अनुदेश के अनुसार अभियन्ता के पद पर प्रोत्रत किया जाता है। ‘ड को पुनः अधिशासी अभियन्ता के पद पर स्थायी करना आवश्यक नहीं होगा क्योंकि अभियन्ता के पद पर भर्ती का एक मात्र स्रोत प्रोन्नति है।

(5) उत्तर प्रदेश सचिवालय के प्रवर वर्ग सहायक का पद लिपिक वर्गीय सेवा का पद है। अनुभाग अधिकारी का पद एक भिन्न सेवा अर्थात् उत्तर प्रदेश सचिवालय सेवा का पद है ‘च एक स्थायी प्रवर वर्ग सहायक है जिसे नियम 4 के उपनियम (1) के अधीन अनुभाग अधिकारी के पद पर प्रोन्नति होने पर पुनः स्थायी करना होगा। अनुसचिव के पद पर और अन्य उच्चतर पदों पर अगली प्रोन्नति होने पर उसका मामला नियम-5 के उपनियम (1) के अन्तर्गत आएगा और ‘च’ को उच्चतर श्रेणी के पदों पर पुनः स्थायी नहीं करना होगा।

  1. उत्तर प्रदेश सचिवालय सेवा नियमावली, 1983 के अधीन उत्तर प्रदेश सचिवालय, सेवा में उपसचिव के पद पर प्रोन्नति के लिए स्थायी अनुसचिव ही पात्र है। उपर्युक्त उपबन्ध से युक्त सेवा नियम इस नियमावली के नियम 5 के उप नियम (1) के अधीन इस सीमा तक संशोधित समझे जायेंगे कि प्रोन्नति के लिये ऐसी पात्रता के सम्बन्ध में स्थायीकरण आवश्यक नहीं होगा।

वे पद जिन पर ये नियम लागू नहीं होगें

  1. ये नियम वहाँ लागू नहीं होंगे जहाँ नियुक्तियाँ उन अधिष्ठानों के पदों पर की जायं, जो निश्चित और पूर्णतः अस्थायी अवधि के लिए सृजित किये गये हों, जैसे कि समितियाँ, जाँच आयोग, किसी विशिष्ट आपात स्थिति से निपटने के लिए सृजित संगठन जिनके कुछ ही वर्षों से अधिक समय तक चलने की प्रत्याशा न हो, विनिर्दिष्ट अवधि के लिए परियोजनाओं और पूर्णतः अस्थायी संगठनों के लिए सृजित पद।

धारणाधिकार रखने का अधिकार

7. ऐसा सरकारी सेवक जिसे नियम 4 के उपनियम (1) के अधीन किसी पद पर स्थायी किया गया हो या किसी उच्चतर पद पर प्रोन्नत किया गया हो और इस नियमावली के नियम 5 के उपनियम (3) के अधीन विहित परिवीक्षा पूरी कर लिया जाना घोषित कर दिया गया हो या जहाँ परिवीक्षा विहित नहीं है। वहाँ नियमित आधार पर उच्चतर पद पर प्रोन्नत कर दिया गया हो, यथास्थिति, यह समझा जायेगा कि उस पद पर उसका धारणाधिकार है।

व्यावृत्ति

8. इस नियमावली की किसी बात का कोई प्रभाव ऐसे आरक्षण और अन्य रियायतों पर नहीं पड़ेगा, जिनका इस सम्बन्ध में सरकार द्वारा समय-समय पर जारी किये गये आदेशों के अनुसार अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों और व्यक्तियों की अन्य विशेष श्रेणियों के अभ्याथियों के लिये उपबन्धित किया जाना अपेक्षित हो।

आज्ञा से

नीरा यादव

सचिव

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