असाधारण अवकाश के नियम

असाधारण अवकाश के नियम, मूल नियम 85, उत्तर प्रदेश | Extraordinary leave rules in Hindi

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असाधारण अवकाश के नियम [मू. नि. 85], वित्त हस्त पुस्तिका, Extraordinary leave rules: यह अवकाश वित्तीय हस्त पुस्तिका खण्ड दो भाग 2 से 4 के मूल नियम 85 तथा सहायक नियम 157-ए (4) द्वारा निर्देशित होता है । जैसा कि इसके नाम से स्वंय स्पष्ट है कि यह एक असाधारण अवकाश है अर्थात यह अवकाश सामान्य परिस्थितियों में देय नहीं होता है । यह अवकाश मुख्यतः तब देय होता है जब,

1- सम्बन्धित कर्मचारी को नियमतः अन्य किसी प्रकार का अवकाश देय न हो ।

2- अन्य प्रकार का अवकाश देय होते हुए भी जब असाधारण अवकाश की माँग निम्नलिखित रुप से की गई हो ।

असाधारण अवकाश की अवधि के लिए कोई अवकाश वेतन देय नहीं होता है। तथापि राज्य कर्मचारियों को किसी एक समय में निम्नांकित विवरण के अनुसार अधिकतम सीमा तक असाधारण अवकाश इस प्रतिबन्ध के साथ स्वीकृत किया जा सकता है कि ऐसे कर्मचारी के उक्त अवकाश से लौटने तक उसके पद के बने रहने की सम्भावना हो ।

(i)- सामान्यतः अधिकतम तीन माह, यदि सेवा 3 वर्ष से कम है।

(ii)- छः माह तक, उन मामलों में जहाँ सम्बन्धित कर्मचारी द्वारा तीन वर्ष की निरन्तर सेवा पूर्ण कर ली गयी हो एवं उक्त अवकाश की माँग चिकित्सा प्रमाण पत्र के आधार पर की गई हो,

(iii)- अठारह माह तक, उन परिस्थितियों में जहाँ सम्बन्धित कर्मचारी द्वारा एक वर्ष की निरन्तर सेवा पूर्ण कर ली गई हो एवं वह किसी सरकारी चिकित्सालय में अथवा निदेशक, चिकित्सा एवं स्वास्थ्य सेवा, उ. प्र. द्वारा प्रधिकृत (recognised) किसी शल्य चिकित्सक अथवा विशेषज्ञ से तपेदिक (tubreculosis) अथवा कुष्ठ रोग (leprosy) का उपचार करा रहा हो। ऐसा अवकाश उक्त चिकित्सकों द्वारा प्रदत्त प्रमाण पत्र के आधार पर एवं उनके द्वारा संस्तुत अवधि के लिए स्वीकृत किया जा सकता है।

(iv)- एक बार में चौबीस माह तक एवं सम्पूर्ण सेवाकाल मे छत्तीस माह की अधिकतम सीमा तक उन मामलों में जब भारत अथवा विदेश में उच्च शिक्षा प्राप्त करने के उद्देश्य से उक्त प्रकार के अवकाश की माँग की गई हो और उच्च शिक्षा जनहित में हो । प्रतिबन्ध यह होगा कि,

1- सम्बन्धित कर्मचारी द्वारा अवकाश की समाप्ति की तिथि को तीन वर्ष की निरन्तर सेवा अवधि पूर्ण कर ली गई हो ।

2- यदि कर्मचारी अस्थायी है तो असाधारण अवकाश की स्वीकृति से पूर्व सम्बन्धित कर्मचारी द्वारा ‘प्रपत्र 10 पर एक बन्धक पत्र इस आशय का भरा जायेगा कि यदि आवश्यकता होगी तो अवकाश से लौटने के उपरान्त उसके द्वारा कम से कम तीन वर्ष तक उसी पद अथवा किसी पद, जिसके लिए निर्देशित किया जाता है, पर कार्य करेगा। ऐसा न करने पर उसके द्वारा अवकाश पर प्रस्थान के समय देय वेतन की दस गुनी धनराशि एवं उस पर व्यय अन्य खचों, यदि हो, का भुगतान अवकाश समाप्ति की तिथि से बैंक दर 1% अधिक की दर से ब्याज सहित भुगतान किया जायेगा ।

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चिकित्सा अवकाश के नियम, मूल नियम बी (2)

किसी स्थायी कर्मचारी को एक बार में निरन्तर 5 वर्ष तक का अवकाश, जिसमें असाधारण अवकाश भी सम्मिलित है, स्वीकृत किया जा सकता है। दूसरे शब्दो में कोई सरकारी सेवक एक बार में विभिन्न अवकाशों का उपभोग करते हुए अधिकतम 5 वर्ष की अवधि तक अनुपस्थित रह सकता है । उपरोक्तानुसार अनुमन्य अधिकतम देय अवकाश की अवधि की समाप्ति के उपरान्त भी यदि किसी कर्मचारी द्वारा राजकीय सेवा में योगदान नहीं दिया जाता है तो ऐसे कर्मचारी के विरुद्ध अनुशासनिक कार्यवाही के उपबन्ध लागू होंगे जिनके अर्न्तगत आवश्यक कार्यवाही करते हुए उसे दण्डित किया जा सकता है। सन्तोष जनक कारण न पाये जाने पर सेवा समाप्ति का दण्ड भी दिया जा सकता है । (मू. नि. 18)

किसी कर्मचारी द्वारा उपभुक्त असाधारण अवकाश की प्रविष्टि सम्बन्धित अवकाश लेखे में किये जाने के अतिरकत अवकाश उपभोग का संक्षिप्त विवरण अवकाश की अवधि सहित कर्मचारी की सेवा पंजिका में लाल स्याही से अंकित किया जाना चाहिए, इसका प्रमुख उद्देश्य यह है कि वेतन वृद्धि स्वीकृत करते समय, सक्षम अधिकारी द्वारा असाधारण अवकाश की अवधि समायोजित की जा सके । किन्तु इसी क्रम में यह जान लेना आवश्यक है कि चिकित्सा प्रमाण पत्र के आधार पर उपभोग किये गये असाधारण अवकाश की अवधि की गणना वार्षिक वेतन वृद्धि हेतु की जाती है । [ मू. नि. 26 (b) (i) तथा (ii)]

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